मन-दर्पण
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एक अर्ज है तुझसे ऐ माली!
नन्ही सी कली है जो तेरे उपवन की
तोड़ ना देना इसे डाली से
वरना खिलने से पहले ये मुरझा जायेगी
इस नन्ही कली को तुम खिलने देना
रंग फिजा का इसमें घुलने देना
देखना फूल बन फिर एक दिन खुश्बू से अपनी
जीवन -उपवन तेरा ये महकायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली..!
नन्ही सी गौरैया है जो तेरे आँगन की
चहक-चहक आँगन में इसे फुदकने देना
इसके सपनो को अपने हौसलों के पंख देना
आसमां से चुनने इसे इन्द्रधनुष के रंग देना
देखना सतरंगी रंगों से फिर एक दिन
जीवन -आँगन तेरा ये रंग जायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली…!!
है पूछती ”अभिव्यक्ति”मेरे अंतर्मन की
”जब बेटी माँ का प्रतिरूप- पिता का अंश है
फिर अपनी ही लाडली से इतना क्यों रंज है!”
शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति”(११/१० /१२ )
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