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ऐसा होता है तो क्योकर होता है
सवाल होते है क्यों ऐसे
जिनका जवाब नहीं होता है
कोई बतलाये या समझाए ये मुझको
एक नजर में कैसे कोई किसी का होता है
पलभर में दिल ये कैसे खोता है
कहते है पहली नजर का प्यार जिसको
प्यार है सचमुच या बस नजरों का धोखा है
ऐसा होता है तो क्योकर..
विश्वास की डोर में चुनकर प्रीत के मोती बरसो
जिस रिश्ते की माला कोई पिरोता है
जन्मों का वो ही रिश्ता फिर
पल-भर में ऐतबार क्यों खोता है
ऐसा होता है तो क्योंकर..
खुदाया! तेरी अजब सी इस दुनिया में
गजब तमाशा होता है
मयस्सर नहीं किसी को रहने के लिये एक अदद जमीं जहां
वहीँ कोई छतों की सीलन देख रोता है
ऐसा होता है तो क्योंकर..
है सोचता अक्सर ये “अभिव्यक्ति” का अंतर्मन
खुद जलकर करता है जो जग को रोशन
फिर उसी चिराग तले अँधेरा क्यों होता है
ऐसा होता है तो क्योकर ..
शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति” अंतर्मन की (१०/०२/२०१४)
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