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यादों के लम्हे!अतीत की सुनहरी पगडंडियों से..(यादों के लम्हों से प्रेमाभिव्यक्ति)

मन-दर्पण
मन-दर्पण
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एक याद भरी  की पुरवाई जब दस्तक देती है मन के दरवाजे पर
हौले से खोल कर बंद मन दरवाजे निकल जाती हूँ
अतीत की उन सुनहरी  सी पगडंडियों पर
जिसपर  कभी यू ही इत्तेफाक से टकरा गए थे हम-तुम
और अपनी बाहों का सहारा देकर हौले से थाम लिया था तुमने मुझको
अनायास ही कुछ देर मेरी उँगलियाँ  उलझी रही थी तुम्हारी उँगलियों में
उस हँसी पल में चुपके से तुम्हारी धडकनों ने मेरी धडकनों से अपनी मोहब्बत का इज़हार कर दिया
जिसकी मौन स्वीकृति में मेरी पलकों की डालियाँ भी शर्म से झुक गयी थी
और तुम्हारे प्यार की वो सोंधी सी खुशबू मेरी सासों में घुलकर यूँ महक उठी थी
जैसे बरसों की प्यासी  जमी बारिश की बूंदों के स्पर्श से महक उठी हो
उन पगडंडियों पर मुलाकातों का ये  हसीं सिलसिला चलता रहा
कि फिर अचानक एक दिन कभी यूँ भी हुआ!
वक्त की एक तेज रफ़्तार आंधी में वो सिलसिला कही गुम सा हो गया
और बीते एक अंतराल में समा गयी वो पगडंडियां काल के गाल में
वक्त के बेरहम हाथों स्याह सी चादर ओढ़ वो सुनहरी पगडंडियाँ गुम हो गयी
पर उन पगडंडियों पर तुम्हारे साथ गुजरे वो लम्हे
आज भी दिल के किसी कोने में इक हंसी याद बन कर जिंदा है
और जब यूँ ही  कोई  याद भरी कोई पुरवाई दस्तक देती है मन दरवाजे पर

तो यादों का दामन थामे निकल जाती हूँ

एक बार फिर तुमसे टकरा जाने की अधूरी सी हसरत लिये

अतीत की उन सुनहरी सी पगडंडियों पर
जिस पर कभी यूँ ही इत्तेफाक से टकरा गए थे हम-तुम..


शिल्पा  भारतीय “अभिव्यक्ति” अंतर्मन की (२५.०२.२०१४)

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