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एक है रनिया एक रानी है
है दोनों थोड़ी सी नटखट थोड़ी सयानी है
नाम है दोनों के एक से पर थोड़ी सी हेर फेर है
और जुदा एक दूजे से दोनों की कहानी है
हर दिन सूरज की किरणे सुबह नयी लाती हैं
आँखों से फिर दोनों की नींद चुराती हैं
इसी के साथ दिनचर्या दोनों की शुरू हो जाती है
निपटा के जल्दी-जल्दी सब काम
हो तैयार दोनों फिर घर से अपने निकलती हैं
तेज तेज कदमो से चलती दोनों अपनी मजिल की ओर बढती है
फिर एक मोड पर आकर जहाँ रनिया के कदम ठिठक जाते है
वहीँ से आगे बढकर रानी स्कूल में दाखिल हो जाती है
और बाहर खड़ी रनिया खुद को उसमे ढूँढती
स्कूल की उस रहस्यमयी दुनिया को
एक हसरत भरी निगाहों से निहारती है
जिस दुनिया में एक बार वो जाना चाहती है
किताबो की पहेलियां सुलझाना चाहती है
लेकर हाथो में कलम अपनी तकदीर बनाना चाहती है
तभी एक ख्याल उसे सताता है
रनिया! चल देर हुई तो मालकिन डाटेंगी
पगार तेरी वो काटेंगी!
इस ख्याल के आगे ना चलता उसका एक बहाना है
जो तकदीर ने लिखा है अभी तो उसे निभाना है
पर कभी तो वो सहर आएगी
जिस दिन किताबो की पहेलियाँ सुलझाने
उस रहस्यमयी सी दुनिया में दाखिल वो हो जाएगी
दिल में ये उम्मीद लिये बोझल कदमो से बढती हुई
आगे गली में मुडकर एक घर में वो दाखिल हो जाती है
जहाँ से उसकी वो रहस्यमयी दुनिया एक बार फिर
उसकी नजरों से ओझल हो जाती है
शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति “
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