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तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो!

मन-दर्पण
मन-दर्पण
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ढूढने मै जो तुझमे प्रेरणा निकली
ऐ स्त्री! तू हर कदम मुझको एक प्रेरणा सी लगी
फर्श से अर्श तक
घर से दफ्तर तक
नदियों से पर्वत तक
धरती से अंतरिक्ष तक
एक दो पायदान नहीं!
बनकर प्रेरणा की एक  श्रृंखला सी मिलती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
जीवन की दुरूह कठिनाइयों को सहती
सौम्य निर्झर झरने सी जब तुम बहती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
जीवन दायिनी नदियों स्वरूप बहती
करती दूजे के अस्तित्व को अपने प्रेम से अभिसिंचित
स्वयं सागर में जब तुम जा मिलती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
धर वसुंधरा का रूप जब
आधार  किसी के जीवन को प्रदान करती  हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
स्व-जीवन में सर्वस्व फैले अंधकार को चीर
जब एक नई सहर सी बन कर खिलती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
लेकर बेटी का रूप
नन्हे नन्हे कदमो से बढती
पानी का ग्लास जब तुम बाबा को देती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
ठीक से अभी चलना भी ना सीखती कि
माँ का हाथ बटाती
अपनी जिम्मेदारियां जब तुम समझने लगती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
बाल्यावस्था की दहलीज पार भी ना करती कि
भाई-बहनों का  माँ सा ध्यान जब  तुम रखने लगती  हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
बनकर अर्धांगिनी किसी की देती उसके जीवन को आधार
एक नया संसार जब तुम रचती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
लेकर माँ का रूप अपने वात्सल्य की छांव तले
देकर अपना लहू और दूध
जीवन एक नया जब तुम रचती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो
और लेकर हौसलों के पंख भरती एक विश्वास भरी उड़ान
बनाती खुद की एक अलग पहचान
धरती से लेकर अंतरिक्ष तक
हर कदम कीर्तिमान नये जब तुम गढती हो
तुम मुझे प्रेरणा सी लगती हो …

शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति”

दिनाँक(०७/०३/२०१४)

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