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ठोकरों ने संभलकर चलना सिखा दिया..

मन-दर्पण
मन-दर्पण
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जिंदगी के सफ़र ने
क्या-क्या सिखा दिया
वक्त के आईने में
जमाने का अक्स दिखा दिया
कहीं अनजानी सी राहों में
दोस्त बन मिले कुछ अजनबी
कहीं आये ऐसे मुकाम भी
जहां अपनों ने ही दामन छुडा लिया
तिनका-तिनका कर बसाया था
कभी ख्वाबों का जो एक आशियाँ मैंने
वक्त की सितमगर लहरों ने
कतरा-कतरा संग अपने बहा लिया
सितम में एक हंसी सितम देखिये
इस नादाँ दिल का भी क्या खूब रहा
लेकर दर्द पराया रोया कभी
कभी अपने ही जख्मो पर कमबख्त मुस्कुरा दिया
माना सफ़र में थी ठोकरे कदम दर कदम इस कदर
कि कभी जिनसे चलना हुआ था दूभर

आज उन्ही ठोकरों ने मगर “अभिव्यक्ति”

तुझे संभलकर चलना सिखा दिया..

शिल्पा भारतीय”अभिव्यक्ति”

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